सियासी दौर में,
सियासी दोर में अब तो,समझ में कुछ नहीं आता,
लड़ाई लड़ रहे अपने, किधर को कोन कब जाता l
जिन्हें परवाह घर की है,वे कितने हैं पता किसको,
अधिकतर स्वार्थ में डूबे, शराफत कौन दिखलाता l
सियासत दोर ऐसा है, कोई अपना नहीं होता,
कोई इस ओर है आता,कोई उस ओर है जाता l
बताते जंग में, या प्यार मे, जायज सभी कुछ है,
किसी फितरत बने मकसद,वही फन रोज अपनाता l
किसी को क्या पता,किस्मत हमारी कब बदल जाये,
भरोसा जिसको रव पर है, वही खुद राह दिखलाता l