सियासी चालें गहरी
एक चढ़े दूजा गिरे, फिर क्यों दोनों संग
एक रूप दो गोलियाँ, लाल-हरा इक रंग
लाल-हरा इक रंग, सियासी चालें गहरी
धर्म-कर्म का ढोंग, सभी इक जैसी ठहरी
महावीर कविराय, गिरे तो क़द आप बढ़े
वो सबमें सिरमौर, तख़्त पर जो एक चढ़े
***
एक चढ़े दूजा गिरे, फिर क्यों दोनों संग
एक रूप दो गोलियाँ, लाल-हरा इक रंग
लाल-हरा इक रंग, सियासी चालें गहरी
धर्म-कर्म का ढोंग, सभी इक जैसी ठहरी
महावीर कविराय, गिरे तो क़द आप बढ़े
वो सबमें सिरमौर, तख़्त पर जो एक चढ़े
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