सियासत
करे चाहे नहीं कुछ भी, बजा पर ढोल देगी ये।
मिलाकर झूठ को सच में, तराजू तोल देगी ये।।
सियासत तो सियासत है, सियासत का भरोसा क्या।
अभी बोला है कुछ इसने, अभी कुछ बोल देगी ये।।
अगर हो फायदा इसका, तो केवल कागजों में ही।
है क्या इतिहास की हस्ती, बदल भूगोल देगी ये।।
सफाई लाख दे लेकिन, भरोसा है नहीं मुझको।
हकीकत को हकीकत में, हकीकत बोल देगी ये।।
दबाने को वतन हित के, सभी मुद्दे यहाँ सुन लो।
अजानों आरती के बीच नफरत घोल देगी ये।।
प्रदीप कुमार