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10 Feb 2021 · 1 min read

सियासत जरूरी है

जब कभी किसी परिवार में दुर्भाग्य पूर्ण जायदाद को लेकर बहस होती है। तो अक्सर भाई , बहन और रिश्ते दारों के बीच विरोध की भावना पैदा हो जाती है।बस उसी को ध्यान में रखकर यह गज़ल लिखी गयी है, जिसे थोड़ा मजाकीया रूप देने की कोशिश की है।

कुछ अपनी भी हिफाज़त जरूरी है।
परिवार में भी सियासत जरूरी है।

कोई मार ना दे कभी ईंट पत्थर,
तो चुप रहने की आदत जरूरी है।

जरा सी बात पे जब उबलने लगें,
तब धीरे से रूखसत जरूरी है।

कहने दो किसीको, वो जो कहता है,
मगर उनकी भी नसीहत जरूरी है।

कहाँ मांगा मैंने सब खातिर अपने,
कुछ मैं,कुछ तुम, ये नीयत जरूरी है।

पर ना समझें तो कह दिया हमने,
उठाओ तो हाथ, हिम्मत जरूरी है।

फिर क्या हुआ, कैसे बयां करें ‘मनी’,
साँस भर के लिए अब हरकत जरूरी है।

3 Likes · 4 Comments · 255 Views
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