सिमटती मोहब्बत
साल दर साल सिमटती मोहब्बत
इस कदर “आशुतोष”
दिल मे धुंआ रख लोग
वफ़ा ढूढ़ते हैं ।
कश्ती मझधार मे डूबी
तब किस्मत को बेवफा मान
तारनहार ढूढ़ते हैं ।
गिला किस्मत का नही
खुद की गई बेरुखी जिंदगी
अब वो ओस मे भी
तपन ढूढ़ते हैं ।।
साल दर साल सिमटती मोहब्बत
इस कदर “आशुतोष”
दिल मे धुंआ रख लोग
वफ़ा ढूढ़ते हैं ।
कश्ती मझधार मे डूबी
तब किस्मत को बेवफा मान
तारनहार ढूढ़ते हैं ।
गिला किस्मत का नही
खुद की गई बेरुखी जिंदगी
अब वो ओस मे भी
तपन ढूढ़ते हैं ।।