एक सिपाही
मैं भांड नही जो चौराहों पर, दरबारी राग सुनाऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
मैं गाऊँगा बलिदानों को, बर्छी, भाले, तीर कटारों को!
बन्दूको के गोली की गूंज, जलते बारूदी अंगारों को!!
सुनने वालें सुनें ध्यान से, सुनने वाला चित्र बनाऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
मैं गाऊँगा खलिहानों को, गेहूं मक्के औऱ धानों को!
हुए पसीने से लथपथ, मेहनत करते किसानों को!!
भारत के बच्चे-बच्चों को, माटी का मोल बताऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
मैं गाऊँगा अब्दुल हमीद, के अखण्ड यश कीर्ति को!
दोहराऊं मेजर होशियार सिंह, के जुझारू प्रवृत्ति को!!
मैं श्रेष्ठ योगेंद्रे परमवीर का, पदरज तिलक लगाऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
मैं स्नेह प्रेम का एक पुजारी, कर्मठ सेवा का भाव धरु!
बहुजन हिताय बहुजन सुखाय, का सदैव ही राह धरु!!
निच्छल पावन अविरल गंगा, जन-जन यूँ ही बहाऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
धूर्त छली और कपटी वेषी, चेते रहना तुम निशी दिन!
अपने स्वार्थ के कारण न, राह अड़ाना मेरे किसी दिन!!
विकट परिस्थिति में वरना, मैं काट छाँट कर जाऊँगा!
मैं एक सिपाही भारत का, शब्दों के फ़ाग उड़ाऊँगा!!
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ११/११/२०१९)