” सिनेमा को दरक़ार है अब सुपरहिट गीतों की ” – लेख
शीर्षक – ” सिनेमा को दरकार है अब सुपरहिट गीतों की ” –
कर्णप्रिय गीत एवं सुमधुर संगीत हमेशा से उत्कृष्ट सिनेमा का हिस्सा रहे हैं । सिनेमा की सफ़लता में गीतों के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता । हिंदी सिनेमा को सदाबहार गीत देने वाले शैलेंद्र , मजरूह सुल्तानपुरी , साहिर लुधियानवी , हसरत जयपुरी , गोपालदास नीरज , एस-एच-बिहारी , अंजान , आनंद बक्षी और समीर प्रमुख हैं ।
हिंदी सिनेमा की कुछ फ़िल्में , अपने बेहतरीन गीतों के कारण आज भी दर्शकों की हिटलिस्ट में है । गीतकार शैलेन्द्र ने अभिनेता-निर्देशक राजकपूर के लिए फ़िल्म संगम और श्री420 के गीत, तो देव आनंद साहब के लिए फ़िल्म गाइड के गीत लिखे । कवि हृदय नीरज के लिखे गीत ऐ भाई ज़रा देख कर चलो ( मेरा नाम जोकर ) , ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली ( शर्मीली ) ,
लिखे जो ख़त तुझे (कन्यादान ) आज भी गुनगुनाये जाते हैं ।
जादुई लफ़्ज़ों के धनी साहिर लुधियानवी की क़लम से वजूद में आये गीत मेरे दिल में आज क्या है , अभी न जाओ छोड़कर, उड़े जब जब ज़ुल्फें , कभी कभी मेरे दिल में ख़्याल,
तुम अगर साथ देने का ,-आज भी सदाबहार नग़में हैं ।
आनंद बक्षी साहब ने भी हिंदी सिनेमा की पुरानी और नयी दोनों पीढ़ियों को बेहतरीन गीत दिये हैं । मेरे मेहबूब क़यामत होगी , अच्छा तो हम चलते हैं , इश्क़ बिना क्या जीना यारों ,
एक हसीना थी जैसे गीत आज भी आनंद बक्षी साहब को उनके चाहने वालों के दिलों में ज़िंदा रखे हुए हैं ।
गीत-संगीत पर ज़्यादा काम हुआ 1990 के दौर में भी …हालांकि वो दौर रीमिक्स की शुरुआत का दौर था लेकिन उस वक्त समीर , जावेद अख़्तर , रानी मलिक के गीतों
और नदीम-श्रवण , आनंद मिलिंद , अनु मलिक के संगीत ने संपूर्ण बालीवुड को अनेक मैजिकल और मेमोरेबल हिटस दिये और संगीत कंपनी टी-सीरिज़ के तत्कालीन मालिक गुलशन कुमार ने बहुत सी पुरसर और दिलक़श आवाज़ों को अपने बैनर से फ़िल्मी दुनिया में लाँच किया जिनमें अनुराधा पौड़वाल ,सोनू निगम , उदित नारायण , कुमार सानू , मोहम्मद अज़ीज़ , नितिन मुकेश प्रमुख हैं ।
आज कुछ फ़िल्में ही अच्छे गीत दे पा रही हैं जो परिवार के साथ बैठकर सुने जा सकते हैं , तेरी गलियाँ , तेरे संग यारा जश्ने बहारा , फ़िर भी तुमको चाहूंगा , कौन तुझे यूं प्यार करेगा , तेरी मिट्टी जैसे गीत भी दर्शकों को उत्साहित करते हैं और सिनेमा में साहित्य के दौर को वापिस लाने का श्रेय गीतकार मनोज मुंतशिर को जाता है ,दूसरी और इरशाद कामिल भी क़ुन फ़ाया क़ुन , दिल दियाँ गल्ला , जब तक मेरे नाम तू ,अगर तुम साथ हो जैसे अर्थपूर्ण गीत और नज़्मों से सिनेमा के दर्जे को बुलंद करने में लगे हैं । इसी फ़ेहरिस्त में स्वानंद किरकिरे ,राजशेखर और सईद क़ादरी जैसे स्थापित गीतकार शामिल हैं । कुल मिलाकर अब सिनेमा को कुछ अच्छे , यादगार और सदाबहार गीतों की आवश्यकता है और
लक्ष्मीकांत प्यारेलाल , शंकर जयकिशन ,नदीम-श्रवण जैसे संगीतकारों की आवश्यकता है जिन्होंने अनेक फ़िल्मी अल्बम्स अपने दम पर हिट करा दिये हैं ।
आज सिनेमा प्रयोगवादी हो चुका है ऐसे में संगीतकार मिथुन शर्मा , प्रीतम और हिमेश रेशमिया जैसे संगीतकारों से कुछ अच्छी धुनों की दरकार है बालीवुड को ,जिनके बलबूते आने वाली पीढ़ियां इन्हें गुनगुना सकेंगी…
सिनेमा का यह दौर रीक्रिएशन का ज़रूर है परंतु पुराने नग़मों को यदि नयी धुनों पर नयी आवाज़ों में प्रस्तुत किया भी जाये तो ग़लत नहीं बशर्ते गीत की आत्मा न छीनी जाये ।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
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