सिनुरा के मोल
एक चुटकी सिनुरा के, मोल का बताई,
छूटे जेसे घरवा दुवार हो,
संग सहेली छूटे, छुटे माई के अचरा,
छुटे ओसे सारा परिवार हो।
छुटे डहरि मायका के, आईल जाईल,
नियति के एहि जे बिचार हो,
एक चुटकी सिनुरा के, मोल का बताई,
छूटे जेसे घरवा दुवार हो।।
होते विदाई जे माई, रोवत कहली,
अईह बेटी सांझे विहान हो,
साले में एक दुई, फेरा डाल जईह,
बाबा जे सुनावे फरमान हो।
भाई कहे जिन रोव, तुहूँ ए बहिना,
मौका परोज लेईम आन हो,
उहे भौजाई कहे, कवन बा जरूरी,
रोज आईला से घटे मान हो।।
ईहे चुटकी भर में, बिक गईली धियवा,
दान लेई भूले अधिकार हो।
एक चुटकी सिनुरा के, मोल का बताई,
छूटे जेसे घरवा दुवार हो।।
दुहिता जे पालल रहनी, लाड़ प्यार अँगना,
उहे अँगना पूछे मोर पहचान हो,
कूदत फांदत पइसी, एहि घर ओहि घरवा,
देवे बन्द केवड़िया सीना तान हो।
निक घर बियाहल बिटिया, अइली का अम्मा,
सुनी सुनी पक गइले कान हो,
सुना सुना काहे लागे, गलि अउर मोहल्लवा,
काहे भइले सभ अनजान हो।।
अतिथि जे भइली हम, अपने देहरिया,
मिले अईसे हमे सत्कार हो।
एक चुटकी सिनुरा के, मोल का बताई,
छूटे जेसे घरवा दुवार हो।।
चलते चलत बेरिया, साड़ी साया माई बंधली,
बाबा देवे अनजा धन धान हो,
हाथी घोड़ा साजी देहलें, विदा हमरो भईया,
भऊजी लउकेली खिसियान हो।
सबके बतावत गईली, नगरी घुमावत गईली,
बनल रहो पीहर के सम्मान हो,
भौजी के करनी ना, केहू से हम कहनी रामा,
घुटी घूंटी पियब सब अपमान हो।।
तुहूँ होखबू केहुवे के, सखी बहनि बिटियाँ,
काहें दिहलु सगरी बिसार हो,
एक चुटकी सिनुरा के, मोल का बताई,
छूटे जेसे घरवा दुवार हो।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २८/०७/२०१९ )