सिद्धान्तों की कीमत पर जीना मंजूर नही मुझे
समझौतों में स्वार्थ और लाचारी की बू आती है,
आत्म-सम्मान स्वाभिमान मृत सैया पर ही नजर आती है,
बेआबरू हो कर जीना,खुद को खुद से ही छलना,
फिर जिंदगी की कौड़ी कीमत भी शेष नही रह जाती l
खुद्दार बनो इतनी गौरत भी बचा के रखो,
फिर वो रूठे या कोई छूटे..
पर सिद्धसांतो की कीमत पर रिस्ते निभाना मंजूर नही,
क्योंकि मृत सैया पर बैठ, जीवन का स्वप्न मंजूर नही मुझे l