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19 Mar 2020 · 1 min read

सिक्का उछालकर

रखता वो अपने आपको कैसे सँभालकर
करता रहा जो फैसले सिक्का उछालकर

कुछ इस तरा जला दिया है दूध ने मुझे
पीने लगा हूँ छाछ को भी मैं उबालकर

उसको कहाँ फिक़र हो जिंदगी कि मौत की
बैठा हुआ है वक्त़ जो साँचे में ढालकर

नफरत रही गरीबों की परछाई से जिसे
खुश हो रहा है देखिए कुत्तों को पालकर

उसको मजा शराब में आए भी क्यों भला
पीता रहा ग़मों को जो बोतल में डालकर

यूँ ही नहीं चमक रहा किरदार ये मेरा
लाया हूँ आसमाँ से सितारे निकालकर

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