सिंदूर विवाह का प्रतीक हो सकता है
सिंदूर विवाह का प्रतीक हो सकता है
परंतु प्रेम का नही।।।।
जिसने भी ये लिखा है उसने बहुत कुछ सोच के लिखा है, हो सकता है उसने बहुत करीब से देखा हो प्रेम को और विवाह को।
शायद ये किसी महिला ने लिखा हो, जिसने प्रेम भी किया मगर समाज और परिवार के बोझ तले अपने प्रेम को त्याग कर विवाह भी किया।
और उसने ये समझा की विवाह कर लेना से मेरे प्रेम पर अंकुश नहीं लग सकता।।।
शायद उसने प्रेम को अपने मन में उतारा हो, और विवाह को समाज के सामने।।
उसने दोहरी जिंदगी जी हो विवाह को भी पवित्र रख कर और अपने प्रेम को भी ।।।।।
सिंदूर लगा लेना सिर्फ किसी एक की हो जाने की गवाह है परंतु प्रेम तो आजाद पंछी की तरह है।
उसे कब गुलाम बनाया जा सकता है और कैसे प्रेम को खरीदा जा सकता है भला सिर्फ सिंदूर से।।।।
आप की क्या राय है कृपया जरूर साझा करें ताकि मैं और अधिक समझ पाऊं इस विवाह और प्रेम के बीच के द्वंद को।।।