सिंदूरी भावों के दीप
ओ प्रिय!
तुम्हारी दहलीज़
मेरे महावर भरे पाँवों से
सिंदूरी भावों से
रंग गई है,
बिखर गये हैं
शुभकामनाओं के
असीम अक्षत,
जल गए हैं
प्रेम के
अलौकिक दीप,
अब हुए हैं साथ
जन्मो के मीत!
जीने लगी हूँ मैं
अपनी चुलबुली
आहटभरी
बेशुमार हरकतों के साथ
पाने लगी हूँ
अपने हर कौतूहल
का जवाब
माथे पर लिया है सहेज
तुम्हारा स्नेही तेज
एक आमंत्रित अभिव्यक्ति
मुझको गई जीत!
मेरे जन्मो के मीत!
नवाजती हूँ दुआओं से
तुम्हारे हर निवाले को
रंग-बिरंगी आँचल सँवार
पूजती हूँ मन के शिवाले को
झंकृत हो गया
सपनों की पायल से
अपना आँगन
निखर आई विश्वास
भरी तुलसी
झिलमिलाने लगी
रिश्तों की दीवारों पर
त्योहारों-सी प्रीत,
अब हुए हैं साथ
जन्मों के मीत!
रश्मि लहर