साहित्य का पोस्टमार्टम
तहज़ीब की ओट में छिपा
बियाबान कहां है आख़िर?
सदियों के सफ़र में हमारी
पहचान कहां है आख़िर?
ऐ शहजादों और परियों के
किस्सों से बहलने वालों!
किसानों और मज़दूरों की
दास्तान कहां है आख़िर?
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