* साहित्य और सृजनकारिता *
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक- अरुण अतृप्त
* साहित्य और सृजनकारिता *
आस्था के पथ का
मैं सजग प्रेहरी
छू कर प्रतिपल
विश्वास की मैं चला देहरी
मैं चला अनजान मन्जिल
को विजित करने
कर सृजन साहित्य के
उन्मान की नित् नई रिति
साथ् लेकर आपको
गर चलेंगें आप
पूरी धरा और व्योम
को माप लेंगें आप
साथ देंगे आप तो
एक एक शब्द का
अर्थ बडा गहरा बनेगा
कविताओं के कृत्य
का भाव जो ठहरा
युं तो मानव मन
उद्विग्न सदा है रह्ता
अपने से जयादा देख
दुखी दूसरे को होता
आस्था के पथ का
मैं सजग प्रेहरी
छू कर प्रतिपल
विश्वास की मैं चला देहरी
है निवारण इन बातों का
मिल पाता सबको कहाँ
कोई कोई ही जा पाता
दुख सागर के पार यंहा