साहित्यिक मेला नोयडा का
ट्रू मीडिया मासिक पत्रिका के मई संस्करण के बाद ओम प्रकाश प्रजापति जी जून संस्करण निकालने की तैयारी में जुट गए थे। अक्सर फोन पर बातें साझा करते रहते थे। पद्म भूषण गोपलदास नीरज जी के घर पर उनसे हुई मुलाकात जेहन से निकल नहीं पाई थी। डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ जी 01 जून को महाराष्ट्र के दौरे पर निकल गए थे, मैं भी परिवार सहित दिल्ली भ्रमण पर निकला हुआ था। डॉ0 गगन जी से इस दौरान वार्तालाप लगभग प्रतिदिन हो जाया करता था। खबर मिली कि जून के आने वाले संस्करण में अक्षरा साहित्यिक संस्था एटा/ कासगंज द्वारा ट्रू मीडिया के प्रधान संपादक श्री ओम प्रकाश प्रजापति जी साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में विशेष योगदान करने हेतु सम्मानित की जाने वाली खबर प्रकाशित होने की सूचना मिली। ये भी खबर मिली कि ट्रू मीडिया द्वारा गीत ऋषि गोपलदास नीरज जी को गौरव सम्मान से नवाजे जाने को भी जून संस्करण में स्थान दिया गया है। दोनों ही खबरें मुझसे जुड़ी हुई थीं अतः मैं बहुत खुश था। जून का अंक कब मिलेगा देखने , पढ़ने को उस दिन का मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। फिर एक दिन पता चला कि जून का अंक श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जी जो नोयडा में रह रही हैं, छंदमुक्त विधा की मल्लिका हैं का विशेषांक के रूप में छप रहा है और 10 जून को नोयडा शहर में उसका लोकार्पण सुनिश्चित हुआ है, जिसमें देश के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकारों के साथ ही कासगंज जनपद की धरा से डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ जी को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है, साथ ही मुझे भी कार्यक्रम में प्रतिभाग करने का आमंत्रण मिला है।
दिल्ली का दौरा खत्म कर मैं कासगंज आ गया था और 9 जून को ही कासगंज से मथुरा निकल गया, क्योंकि 10 जून को 10 बजकर 30 मिनट तक कार्यक्रम स्थल पर पहुंचना था। नोयडा जाने की उत्सुकता में सुबह पांच बजे ही आंख खुल गई। ये रात लंबी मालूम पड़ी। रास्ता लंबा था इसलिए समय से निकलना भी जरूरी था। चूंकि डॉ0 गगन जी को मंच पर बैठना था अतः कार्यक्रम के निर्धारित समय से पहुचना भी जरूरी था। पांच लोग ही कार में जा सकते थे, डॉ0 गगन जी, उनकी बेटी श्रीमती रेखा जी, दामाद श्री गगनेश जी और गगनेश जी के लघु भ्राता श्री ब्रजेश गौर जी और मैं ठीक 7.45 पर रेखा जी के आवास से निकले। निकलते ही ओम प्रकाश प्रजापति जी को फोन द्वारा अवगत कराया कि हम लोग मथुरा से निकल चुके हैं तथा कहा कि आप कार्यक्रम स्थल का रास्ता बता दें कि कैसे पहुंचना है। प्रजापति जी ने कहा कि मै गूगल लोकेशन भेज रहा हूँ मोबाइल पर आप उसी को देखकर आराम से पहुंच जाएंगे। हल्की से बीप की आवाज मोबाइल से आयी, देखा तो गूगल लोकेशन आ चुकी थी। मैंने तुरंत जी पी एस ऑन किया और निश्चिंत हो गए। राया कट से हमारी कार ताज एक्सप्रेस वे पर चढ़ी। क्या रास्ता था! मैंने इतना चौड़ा रास्ता अब तक नहीं देखा था। दो पहिया, तीन पहिया के लिए अलग, ट्रक, बस के लिए अलग और कारों के लिए अलग से लेन बनी थी।ओवरटेक लेन दांयी ओर से करना था, अलग लेन से। जगह-जगह रोड पर चलने के दिशानिर्देश लिखे होर्डिंग्स लगे थे। कारों के लिए 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति निर्धारित थी, पर मुझे नहीं लगा कि कोई कार 130 या 140 से नीचे चल रही हो। ये भी हमारे देश की एक विशेषता है, कि कोई भी व्यक्ति नियम , कानून से बंधकर चलने में छोटा महसूस करता है।
ऐसा लग रहा था कि रेस चल रही हो, कभी कोई आगे निकल जाता तो कभी कोई काफी दूर छूट जाता। रास्ता भी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था, ऐसा लगता था मानो रास्ता भी हमसे रेस का खेल खेल रहा है। रास्ता भी हमारे साथ ही दौड़ रहा था। हर आदमी जल्दी में था, जान की परवाह किसी को नहीं थी, ड्राइवरों के पैर एक्सिलरेटर पर थे, ब्रेक पर शायद ही किसी के हों, जिंदगी और मौत के बीच ज्यादा फासला नहीं था यहां। मौतों के कई मंजरों का गवाह था ये हाई वे, फिर भी लोग नियंत्रित गति से नहीं चलते। रेस का खेल , सड़क सौंदर्य अवलोकन के साथ साहित्यिक चर्चाओं के बीच हम नोयडा में प्रवेश कर चुके थे। नोयडा भौगोलिक दृष्टि से तो उत्तर प्रदेश में ही स्थित है लेकिन शक्लोसूरत में दिल्ली से कहीं बेहतर शहर है। लगभग दो घंटे की अनवरत यात्रा के बाद मोबाइल में लगे जी पी एस ने बताया कि हम अपने डेस्टिनेशन पर पहुंच चुके हैं। कार पार्किंग में खड़ी कर रेल नगर और कम्युनिटी सेंटर को तलाशने लगे। रेलनगर एक गेट बंद कॉलोनी थी, कालोनी की स्वच्छता और फूल फुलवारी देखकर मन प्रसन्न हो गया, सफर की सारी थकान रफूचक्कर हो गई। भौतिक थकान पर आध्यात्मिक सुकून भारी पड़ा। गेट मैन से पूछने पर पता चला कि कम्युनिटी सेंटर अंदर ही है, बड़े बड़े डग भर के हम कम्युनिटी सेंटर की ओर बढ़े, क्योंकि घड़ी के मुताबिक हम पूरे दस मिनट लेट थे। कम्युनिटी सेंटर के गेट पर पहुंचते ही वहां की चकाचौंध देखकर हमारे कदम यकायक ठहर गए। हम अंदर घुसने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, वहां की व्यवस्थाएं हमारे अनुमान से कई गुना बेहतर थीं। हमें एक बार तो ऐसा लगा की कहीं गलत जगह तो नहीं आ गए, तभी मंच की व्यवस्थाओं में तल्लीन ओम प्रकाश प्रजापति जी की नज़र हम पर पड़ी, दौड़कर हमारे पास आए, कुशलक्षेम पूछी। मुझे तो गले से लगा लिया। प्रजापति जी का स्नेह ठीक वैसा ही था जैसा भरत के प्रति भगवान श्रीराम का था, चेहरे से मुस्कराहट का झरना झर रहा था उनके। अगले कुछ मिनटों में हम कम्युनिटी हाल के अंदर थे।मंच सज चुका था। बैठने का इंतज़ाम दर्शनीय था, सामने तीन ओर बैठने की व्यवस्था की गई थी, राउंड मेजों के चारों ओर कुर्सियां बिछाई गईं थीं श्रोताओं के लिए। हम लोगों ने एक मेज के चारों ओर पड़ी कुर्सियों पर अपना स्थान लिया। बैठ ही पाए थे कि एक घनी मोटी मूछों वाले गोरे रंग के व्यक्ति हाथ जोड़कर मुस्कराते हुए हम लोगों से मुखातिब हुए। प्रजापति जी हमारे साथ ही बैठे हुए थे , तो उनका हम से और हमारा उनसे परिचय कराया। वे श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जी के पतिदेव थे। बहुत मृदु व्यवहार था उनका। हमारा हाल चाल लिया , वेटरों को इशारा किया और अन्य आगंतुकों की आवभगत में तल्लीन हो गए। देखते ही देखते वेटरों ने घेर लिया हमें। कोई पानी, कोई कोल्डड्रिंक, कोई आम पना, कोई जलजीरा , कोई बादाम शेक तो कोई फिंगर चिप्स लिए खड़ा था। कुछ स्नैक्स के तो हम नाम से भी परिचित नहीं थे। एक तो व्यंजनों का लाजवाब स्वाद दूजे मीनाक्षी सुकुमारन जी के पतिदेव का प्यार भरा सत्कार दोनो के समन्वय ने हमें गदगद कर दिया था। सुकुमारन जी का बेटा एक थाल में रोली चावल और गुलाब की पंखुड़ियां लेकर आया और मेरे साथ सभी अतिथियों के मस्तक पर रोली चावल लगा कर उनके ऊपर गुलाब की पंखुड़ियां डाल कर स्वागत कर रहा था। पूरे परिवार का सेवा भाव देखकर लगता था कि प्रत्येक आगंतुक उनके लिए मुख्य अतिथि है। ओम प्रकाश प्रजापति जी भी हर आगंतुक की गर्मजोशी से खैर खबर ले रहे थे। आगंतुकों का सिलसिला अब खत्म हुआ, सारी कुर्सियां भर चुकी थीं। देश के जाने माने साहित्यकारों के बीच बैठा मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा था। वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती नीरजा मेहता जी से श्री प्रजापति जी ने करवाया , हालांकि फ़ेसबुक पर वे मेरी मित्र सूची में पहले से थीं, ने माइक संभाला। एक एक विशिष्ट साहित्यकार को पुकार कर मंच पर बैठाया जाने लगा, कासगंज के डॉ0 गगन जी को भी मंच पर बैठाया गया। माँ शारदे के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के बाद कार्यक्रम औपचारिक रूप से प्रारंभ हुआ। श्रीमती नीरजा मेहता के कुशल संचालन में कार्यक्रम अपनी ऊंचाई पर पहुंचने लगा। ऐसा लगता था कि कोई मालिन सुन्दर पुष्पों को करीने से एक माला में पिरोए जा रही हो। सब लोग अपने अपने काम में खोए हुए थे। मंच अपनी भूमिका में, नीरजा जी अपनी भूमिका में, श्रोता अपना काम कर रहे थे तो वेटर और शेफ भी अपनी अपनी भूमिका का निर्वहन पूरी लगन के साथ कर रहे थे। जब भूमिकाएं सही ढंग से निभाई जाती हैं तो परिणाम सुखदायी होते हैं। एक ज्ञानबर्धक, मनमोहक, साहित्यिक कार्यक्रम अपने यौवन की ओर बढ़ चला था। श्रीमती सुकुमारन जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चाएं आरंभ हुईं। श्रीमती सुकुमारन जी के जीवन संघर्षों के बीच उपजी कविता से प्रभावित होकर प्रजापति जी ने जून 2018 के अंक के लिए विशेषांक के रूप में सुकुमारन जी को ऐसे ही नहीं चुन लिया, जब उनके व्यवहार , सादगी, संघर्ष और रचनाओं को जाना तो यकीनन ऐसा लगा कि श्रीमती सुकुमारन जी का कद कहीं ज्यादा ऊंचा है। प्रकृति संतुलन और पर्यावरण को बचाने का संदेश देश और दुनिया को देने के लिए श्रीमती सुकुमारन जी ने अतिथियों को एक एक तुलसी का पौधा लगा सुन्दर गमला भेंट किया था।समाज के कल्याण की यह सोच निश्चित ही उन्हें अन्य लोगों से वैचारिक धरातल पर अलग स्थान दिलाती है। जिस प्रकार बादलों से घिरा सूरज बादलों के हटने पर अपनी आभाओ के साथ और अधिक तीव्रता के साथ चमकता है, श्रीमती सुकुमारन जी का समग्र चरित्र उसी की भांति दमक रहा था। समारोह में उपस्थित एक एक व्यक्ति ऊपर उनकी नजर थी कि किसी के सम्मान में कोई चूक न रह जाए। उनके विशेषांक में अपने लेख देने वाले साहित्यकारों के सम्मान से लेकर हर उस व्यक्ति का सम्मान किया जो उस हाल में उपस्थित था।
कासगंज और मथुरा की साहित्यकार टीम को विशेष आदर के साथ सामूहिक रुप से सम्मानित किया था। ट्रू मीडिया टीम ने भी श्रीमती सुकुमारन जी को ट्रू मीडिया गौरव सम्मान 2018 से अलंकृत किया।
मंचासीन साहित्यकारों ने ट्रू मीडिया विशेषांक जून 2018 का भव्य लोकार्पण किया गया। इसी गरिमामयी मंच से ट्रू मीडिया की सह सम्पादक एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 पुष्पा जोशी जी के काव्य संग्रह ‘मन के मनके’ सहित कासगंज के डॉ0 चन्द्रपाल मिश्र ‘गगन’ जी की काव्यकृति ‘हम ढलानों पर खड़े हैं’ का भी लोकार्पण मंच से किया गया। अब दोपहर के भोजन की बारी थी हालांकि 3 बज चुके थे, परन्तु कार्यक्रम के जायके के आगे समय भी ठहर सा गया था। लंच के दौरान ही आभासी दुनिया के कुछ मित्रों से रूबरू होने का मौका मिला। वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिभवन कौल जी मिले, शायर, प्रकाशक, संपादक श्री ए एस खान अली साहब एवं युवा उत्कर्ष मंच दिल्ली के अध्यक्ष एवं साहित्यकार श्री राम किशोर उपाध्याय जी से मिलकर लगा कि हमारी मुलाकात बहुत पुरानी है। अपनापन सा था उनके व्यवहार में। उनसे मुलाकात के दौरान उम्र कोई दीवार नहीं बनी, मिलावट रहित प्यार की अनुभूति हुई। लजीज व्यंजनों के बीच लजीज बातें स्वाद तो दोगुना होना लाजिमी था। भोजन ग्रहण कर हम श्रीमती सुकुमारन जी और प्रजापति जी से विदा ले कार्यक्रम के चलचित्र आंखों में लिए वापस घर लौट आए।
नरेन्द्र ‘मगन’
कासगंज
9411999468