साहित्यकार और पत्रकार का समाज के प्रति दायित्व
साहित्यकार और पत्रकार का समाज के प्रति दायित्व
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लेखन ऐसा चाहिए , जिसमें हो ईमान |
सद्कर्म और मर्म ही, हो जिसमें भगवान ||
जिस प्रकार साहित्य समाज का दर्पण होता है , उसी प्रकार मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ होता है | साहित्यकार और पत्रकार सदा से ही अपनी लेखनी समाज की प्रतिष्ठा और नीति-नियम के अनुसार अपना पावन कर्तव्य बड़ी कर्मठता से निभाते रहे हैं | इतिहास गवाह है कि साहित्यकार और पत्रकारों के लेखन ने , न केवल यूरोपीय पुनर्जागरण में अपनी महत्वपूर्ण और सशक्त भूमिका निभाई है वरन् भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी | इसके अतिरिक्त समाज और राष्ट्र-निर्माण में अपना बहुमूल्य योगदान देते हुए नवाचार के द्वारा विकास का एक नया अध्याय भी लिखा | आज भी इनकी प्रासंगिकता बनी हुई है | वर्तमान में अनेक प्रकार की सामाजिक-आर्थिक-सांस्कृतिक-भौगोलिक-ऐतिहासिक और सामरिक समस्याऐं वैश्विक समुदाय के सामने उपस्थित हैं जैसे– आतंकवाद , नक्सलवाद, मादक द्रव्यों की तस्करी , भ्रष्टाचार, भ्रूण हत्या, बलात्कार , गरीबी , बेरोजगारी , भूखमरी , साम्प्रदायिकता , ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन क्षरण , एलनीनो प्रभाव ,सीमा पार घुसपैठ , अवैध व्यापार इत्यादि-इत्यादि | इस प्रकार की अनेक समस्याओं को लेखक और पत्रकार अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से निर्भीक और स्वतंत्र होकर समाज के सामने उपस्थित करते हैं , ताकि देश के जिम्मेदार नागरिकों में जन-जागरूकता और सतर्कता का प्रसार हो ,और वे अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझें |
समाज के नागरिकों में उत्तरदायित्व की भावनात्मक अभिव्यक्ति और शक्ति को उजागर करने तथा उसके क्रियान्वयन हेतु साहित्यकार और पत्रकार एक प्रतिबिम्ब के रूप में होते हैं | यही कारण है कि सुयोग्य नागरिक अपनी जवाबदेहता और सक्षमता को समझकर अपने मूल अधिकारों की रक्षा करने और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए अपना योगदान सुनिश्चित करते हैं | जब भी कोई सामाजिक या राष्ट्र से संबंधित समस्या उजागर होती है तो लेखक और पत्रकार ही अपनी तलवार रूपी लेखनी को हथियार बना कर विजय को सुन करते हैं | अभी हाल ही में देखा भी गया था कि “असहिष्णुता” के नाम पर कितने ही लेखकों और पत्रकारों ने अपना बलिदान तक दे दिया | यही नहीं भारतीय कला, इतिहास ,संस्कार एवं संस्कृति को जीवित रखने तथा उनको पुनर्जीवित करने में भी अपनी विशेष भूमिका का निर्वहन करते हैं | ये अपनी सूक्ष्म अभिव्यक्ति के माध्यम से सूक्ष्मतम एवं गूढ़तम स्वरूप में समस्या का पोस्टमार्टम करते हैं ,ताकि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मानवता और मानवीय सद्गुणों और नैतिकता की पुनर्स्थापना की जा सके | अत: सार रूप में हम कह सकते हैं कि — लेखक और पत्रकार समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व के निर्वहन में पूर्णत : सफल रहे हैं |
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”