साहस
जब बार- बार गिरकर भी
खड़े हो सके हम |
जब हार कर भी कई बार
निज लक्ष्य न तजे हम ।
यूँ संभलने का साहस
न इतना सरल है ।
यदि तुम में ये साहस
ईश का ही ये वर है।
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रोज सुबह अपनी अधूरी नींद के साथ
उठते ही,
सबकी सुबह खूबसूरत बनाने को तैयार
मशीन की तरह जुटती माँ,
अपनी भूख व इच्छाओं को दबा
सबका पोषण व ख्याल करती माँ,
परिवार की मुसीबतों पर
ढाल बनकर खड़ी रहती माँ,
अपने जीवन को दॉव पर लगा
नव जीवन को गढ़ती माँ,
बच्चे के पालन-पोषण के लिए
माँ बाप बनती एकाकी वो माँ,
मुझे लगता है शायद
साहस की सही परिभाषा है माँ ।