साहस है तो !
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साहस है तो !
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हर दिन नया-नया होता है,
और शाम तक वही पुराना !
जीवन जीने को कहते हैं,
और नहीं तो बस अफसाना !!
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कोयल शिशु के कागा पाले,
ऐसे ही दुनियां भ्रम पाले ;
बोली है पहचान शुभ-अशुभ-
सज्जन को स्वर से पहचाना !
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रातें शबनम से रोती हैं,
दिनकर आ आँसू पी लेता;
पर दिनकर को चोट लगे तब-
कौन चाहता उसे चुपाना ?
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दिल से दिल तक की गहराई,
दिल से ही नापी जाती है ;
उथले हृदय नाप ना पाते –
पाते नहीं यथेष्ट निशाना !
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तितली के पर बहुत मुलायम,
शायद फूलों से भी ज्यादा ;
उम्दा से उम्दा मिलने को –
मानक तितली का इतराना !
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मानव बहुत बिचित्र धरोहर ,
रूक्ष और अति कोमल भी है ;
डर कर कभी वार ये करता-
साहस करे तो जेय जमाना !
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C/R @ स्वरूप दिनकर
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