साहस भरी यात्रा…
सुनो सुनो एक हमारी दास्तान ।
साहस भरी यात्रा का ऐलान ।।
हम मित्र मिले बचपन में चार ।
जाना था गाँव किया विचार ।।
उन दिनों की हैं यह एक बात ।
सड़क नही, था मौसम बरसात ।।
साथी एक विकलांग यह दुविधा ।
किन्तु दूसरी न थी कोई सुविधा ।।
जाना था हम सबको बड़ी दूर ।
हुआ निश्चय हम चलेंगे जरूर ।।
मन में भर कर ले चले विश्वास ।
चिंता सबकी, मंजिल नही पास ।।
साथी हमारा विकलांग था फूल ।
कैसे पैदल चलेगा राह भरी धूल ।।
ले ईश्वर का नाम चल दिए गाँव ।
पैदल पैदल चले कभी ढूँढे छाँव ।।
आया था रामपुरिया प्रथम पड़ाव ।
सबने किया यहाँ थोड़ा ठहराव ।।
आगे का जो करना था सफर ।
बड़ी कठिन थी आने वाली डगर ।।
जंगल जंगल पहाड़ पहाड़ चले ।
देखो जा रहे है चार बच्चे भले ।।
पेड़ो के झुरमुट हिलते कभी ।
हम थोड़े डरते ,आगे बढ़ते सभी ।।
राह पथरीली मिले कंकड़ पत्थर।
कभी पानी बरसे होते तरबतर ।।
बार बार पूछते, मित्र फूल से हाल ।
विकलांग मित्र थोड़ा था बेहाल ।।
हम बढ़ते जाते बचपन के वीर ।
राह में बातें करते होते न अधीर ।।
राह में लगी सबको थी प्यास ।
इधर उधर जल खोजे लेकर आस ।।
बह रहा था पास झरना कलकल ।
प्यास बुझाकर सब दिए फिर चल ।।
सूरज भी आया था अब ढलने को ।
हम भी बड़े आतुर थे चलने को ।।
राह के कई गाँव हमने किए पार ।
अब मंजिल दूर न थी सुनो यार ।।
थककर चूर हुए लगने लगी भूख ।
बार बार गला भी जाता था सूख ।।
आगे आया एक तालाब बड़ा ।
पास एक छायादार पेड़ खड़ा ।।
सबने बैठ यही किया था विश्राम ।
खाया पीया आने को थी शाम ।।
फिर चल दिए सब गाँव ओर ।
दिखने लगा था अब मंजिल छोर ।।
आ गए थे हम चलकर पैदल ।
विश्वास नही हुआ एक पल ।।
कैसे मित्र विकलांग चढ़ा पहाड़ ।
राह भर सुनते रहे उसकी दहाड़ ।।
सुखद सुहावनी यह यात्रा बनी ।
मन मे बस गई बन एक कहानी ।।
जब जब करते हम इसको याद ।
सिहर उठते मित्र सब भरकर नाद ।।
।।जेपीएल।।