सास बहू..…. एक सोच
शीर्षक – सच्ची खुशी
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सच्ची खुशी ही जीवन का महत्व रखती है। परंतु हम इंसान सच्ची खुशी का मतलब नहीं जानते हैं और हम सच्ची खुशी धन दौलत और मोह माया में समझते हैं परंतु आज का नया युग और आधुनिक जमाने में हमारी सब की सोच बदल रही है फिर भी कुछ लोग आज भी सच्ची खुशी का मतलब नहीं जानती लिए हम एक बहू और सास के झगड़े को सच्ची खुशी के रूप में पढ़ते हैं।
राजन मूलचंद का एक इकलौता बेटा था और उसकी पत्नी मालती एक लालची किस्म की औरत परंतु मूलचंद उलझा हुआ और समझदार व्यक्ति था परंतु आजकल की माहौल के अनुसार मूलचंद जी अपनी पत्नी के सामने चुप हो जाता था। क्योंकि वह जानता था। घर में बेवजह का अशांत वातावरण सही नहीं है राजन पर लिखकर एक आंखों का डॉक्टर बन चुका था आप उसकी मां मालती के मन में धन दौलत का लालच सवार था और वह अपने बेटे की शादी एक ऐसे घर में करना चाहती थी जहां से हुए करोड़ों रुपए धन और दान दहेज ले सकती हो। पिता मूलचंद सोचता था कोई लक्ष्मी स्वरूप बेटी घर में आ जाए और घर में सुख शांति का वातावरण बना दे।
परंतु मालती सच्ची खुशी का आनंद जानती नहीं थी। क्योंकि वह तो केवल झूठ दिखाए और शान शौकत दिखाने की लालसा और पास पड़ोस के घरों में रहने वाली औरतें परिवारों पर अपना रौब दिखाने के लिए हमेशा धन दौलत के सपना देखा करती थी। और राजन के लिए एक रिश्ता आता है जहां पैसे के साथ-साथ लड़की आधुनिक युग की थी। राजन की शादी रजनी के साथ बहुत धूमधाम से हो जाती है और शादी में रजनी अपने साथ दान दहेज के साथ-साथ बहुत सा सम्मान भी लेकर आती है। मालती का सपना तो यही था परंतु वह यह भी चाहती थी की बहू मेरे पांव दबाए हां सुबह उठकर चाय कॉफी नाश्ता बनाकर मेरे सामने खड़ी रहे।
क्योंकि मालती की सच्ची खुशी केवल अपने लिए थी वह मां भावों में बहू को एक नौकरानी की तरह बनना चाहती थी यह उसकी मानसिकता का झगड़ा था क्योंकि सच्ची खुशी का अर्थ है समझ नहीं सकती थी। रजनी के हाथों की मेहंदी भी नहीं सूखी थी सुबह-सुबह मालती नहीं आवाज लगा दी रजनी और रजनी इस बात पर मालती को मालती के पति ने कहा अभी अभी नहीं शादी हुई है तुम उनको सही से मिलने खान और सोने दो वह घर की बहू है ना की कोई नौकरानी इस बात पर मालती ने चमक कर अपने पति मूलचंद को चुप कर दिया और मूलचंद चुपचाप होकर रह गए।
मालती आवाज सुनकर नीचे आ जाती और पूछती है बताइए मां जी क्या बात है। रजनी एक आधुनिक विचारों की पढ़ी-लिखी लड़की थी। तब मालती रजनी से कहती है कि जो रसोई में जाकर मेरे लिए अच्छी सी चाय बना कर लाओ। रजनी समझ जाती है की मां जी को सबक सिखाना पड़ेगा तब है रसोई में जाकर चाय में लाल मिर्च पाउडर और नमक डाल लाती है और वह मालती को चाय देती है। चाय पीकर मालती का मुंह जल जाता है और है रजनी को जलीकट्टी सुनाने लगती है। परंतु रजनी को सोच समझ कर चाय बनाकर लाई थी वह पूछती है मां जी क्या हुआ।
मालती कहती है तुमको चाय बनाने नहीं आती है माजी हमारे यहां तो नमक मिर्च की चाय पीते हैं मैं तो वही जानती हूं बनाना आपको अगर अच्छी ना लगे तो आप रसोई में जाकर खुद बना ले कहकर वह अपने कमरे की ओर चली जाती है। मालती का तमतमाता लाल चेहरा देखकर रजनी मुस्कराती हुई कमरे मे राजन के पास आ जाती है। राजन पूछता है इतनी सुबह मां ने क्यों बुलाया था। रजनी राजन से चुटकी लेती है और कहती है आपकी मां को सच्ची खुशी का आनंद चाहिए था बहू से तब वह आनंद में सुबह देकर आई हूं राजन उसकी बात सुनकर हंसता हुआ रजनी को बाहों में भर लेता है।
अब रजनी और मालती में रोजाना तू तू मैं मैं बढ़ जाती है। मूलचंद मालती को समझता है की सच्ची खुशी का मतलब घर में सुख शांति होता है तुम बहू को प्यार से सहयोग करो तो शायद रहे तुमको सही सेवक करेगी परंतु मल्टी अपनी आदत से मजबूर थी और वह रजनी को नौकरानी बनाना चाहती परंतु रजनी भी आधुनिक युग की लड़की की वह भी मालती को सुधारना चाहती थी क्योंकि पहचानती थी कि मालती सासू मां बददिमाग है। जब रजनी मालती के कहे काम को बिगाड़ देती थी तब रजनी बहुत खुश होती थी और उसकी सच्ची खुशी मिलती थी क्योंकि वह एक सास को सबक सिखा रही थी। अब कुछ दिनों बाद मल्टी समझ जाती है की रोजाना का क्लेश मुझे बीमार कर देगा और मैं रजनी से समझौता कर लेती हैं।
और अब रजनी भी मालती के काम को कहने से पहले ही कर देती हैं। मालती एक समझदार लड़की थी और वहसास बहू के झगड़े को घर की चारदीवारी में ही सुलझा देती है। इधर मालती को भी एहसास होता है कि वह गलत कर रही थी बहू के साथ और वह अपने पति मूलचंद से भी माफी मांगती है कहती है की सच्ची खुशी घर में मिल जुलकर रहने में होती है और मूलचंद भी अपनी पत्नी मालती को गले लगा लेता है इस तरह घर के झगड़े घर में ही सुलझ जाते हैं और सास बहू एक दूसरी से प्यार करने लगती है जिससे उनको सच्ची खुशी का महत्व मालूम होता है।
मालती और रजनी दोनों समझ जाती है सास बहू एक दूसरे के पूरक होते हैं और एक दूसरे को समझदारी से मां बेटी की तरह रहना और मिलकर चलना चाहिए क्योंकि बहू मायका और ससुराल दोनों की बहुमूल्य आशा होती है किसी की बेटी किसी की बहू भी होती है आओ हम सभी समझदारी से घर के झगड़े घर में ही निपटाएं और एक दूसरे को समझने का प्रयास करें क्योंकि सास भी कभी बहू थी यह कहावत बहुत पुरानी है और हम सभी समझदारी से सच्ची खुशी का आनंद ले सकते हैं और जीवन खुशियों से भर सकते है।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र