*”सावन”*
“सावन”
घनघोर घटा छाए ,सावन की रुत ये आई।
रिमझिम बरसता पानी ,मौसम ने ली अंगड़ाई।
खिलता हुआ चमन ये ,कलियाँ भी मुस्कराई।
भँवरे भी गुनगुनाते ,तितलियां भी उड़के आई।
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मौसम हुआ सुहाना , ठंडी पवन चले पुरवाई।
वसुधा ने किया श्रृंगार ,सौंधी मिट्टी की खुशबू आई।
बूंदे गिरती मोतियों सी ,तरूवर झूमें वसुधा की प्यास है बुझाई।
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कागज की कश्ती बनाये ,मौज मस्ती बचपन की याद आई।
व्याकुल होकर कृषक अकुलाए ,
ताल तलैया भरे मन को हरषाई।
वन में मोर दादुर पपीहा बोले ,
कोयलिया ने मृदु तान सुनाई।
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हरी भरी वसुंधरा ,तपती गर्मी में हरियाली छाई।
पावस ऋतु का आगमन ,मन में उमंग खुशियाँ ले आई।
उमड़ घुमड़ मेघ करते गर्जना ,आसमान में लालिमा छाई।
सावन की फुहार में भींगता तनमन,
थिरकते पाँव नई उमंग जगाई।
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शशिकला व्यास✍️