सावन
दोहा पूर्ति# 94. (दोहा गजल)
सावन मन भावन लगे, रिमझिम पड़े फुहार।
घर आजा परदेसिया, सेनुर शौक हमार।।
सावन, बिन साजन सखी, बरसाता अंगार।
तन मन मुरझाने लगा, शीतल मन्द फुहार।।
सावन भादो हो गए, मेरे दोनों नैन।
साजन तेरी याद में, जागूं मैं दिन-रैन।२।
सावन, मेरे देश में, अब तेरा क्या काम।
दूर देश जाने कहाँ, बसते मेरे श्याम।३।
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य