सावन
सावन सोना- सा लगे, मोती-सी हर बूँद।
धरती अंबर से मिली, अपनी पलकें मूँद।।
सावन बरसाने लगा,निर्मल जल की धार।
बूँद-बूँद जीवन भरा, अमृत की बौछार।।
गूँज रहा धरती गगन, सुखद श्रावणी गीत।
बादल बिजली का मिलन, बरस रहा है प्रीत।
पहन पाँव में पैजनी, नाच रही दिल खोल।
बरस रहा रस श्रावणी, प्रीत पिया का घोल।।
सखी-सहेली झूलती, झूला साजन संग।
पिया बिना भाता नहीं, मुझे श्रावणी रंग।।
सावन साजन को लिए, आ जाना इस बार।
जब उनसे होगा मिलन, बरसा देना प्यार।।
निर्झर बहते अश्रु को,मिले बूँद का संग।
बरसों सावन इस तरह, शीतल कर दो अंग।।
साजन जी आये नहीं, सावन आया द्वार।
जब जुगनू चमके सखी, दिल जलते अंगार।।
-लक्ष्मी सिंह