सावन सुहावना सा
मनहरण घनाक्षरी
सावन सुहावन सा,लगे मनभावना सा,
काले काले मेघ आए,देख सुख पाइए।
मयूर मगन नाचे,पपीहा के बोल साँचे,
कोयल के गीत भाए,झूम झूम जाइए।
होती बरसात भली,खिल उठे कली-अली,
हरी भरी धरती लगे,आनंद उठाइए।
फेन उगले झरने,नदियाँ लगी बहने
खेत में किसान झूमे,गीत नया गाइए।।
अभिलाषा चौहान’सुज्ञ’
स्वरचित मौलिक