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28 Jul 2021 · 1 min read

— सावन बिखर गया —

हुआ करती थी कभी
चहलकदमी झूलों पर
जब सावन में बंध जाती थी
रस्सियाँ कुछ पेड़ों पर !!

मन में उल्लास
लबों पर ख़ुशी झलकती थी
सावन के दिनों में हर महिला
झूलती थी जब झूलों पर !!

सज धज कर सुंदर
वस्त्रों और चूड़ियों की खनक पर
गीतों से सुसज्जित गुनगुनाती थी
मिलकर सब झूलों पर !!

वकत ने फीका कर दिया
यह सावन का भी महीना
आज राह देखते हैं दरख़्त
कब पड़ेंगे झूले उन पर !!

मन में डर , मुस्कान फीकी पड़ गयी
आज हर घर से ख़ुशी ही निकल गयी
कब लौट के आएगा वो बीता समां
जब सब मिलकर मिलेंगी झूलों पर !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
3 Likes · 4 Comments · 214 Views
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