सावन बरसता है उधर….
सावन बरसता है…..
सावन बरसता है उधर, इधर दो नैन बरसते हैं।
चाह में तुम्हारी आज भी हम, दिन-रैन तरसते हैं।
प्यास-तपन सब मिटी, धरा हर्ष-मगन इठलाए।
आक-जवास के जैसे, मेरे अरमान झुलसते हैं।
जाकर फिर न पलटे, परदेसी कहाँ तुम भूले ?
खोज में कबसे तुम्हारी, हम दर-दर भटकते हैं।
तसव्वुर में संग तुम्हारे, यूँ तो हम जी लेते हैं।
पर एक झलक पाने को, ये मन-प्रान तरसते हैं।
बिन तुम्हारे सूना-सूना, घर का कोना-कोना।
आँगन तरसता है, सूने दर-ओ-दीवार तरसते हैं।
कितना तुम्हें चाहा, पर जुबां पे नाम न आया।
कहने में बात दिल की, हम अब भी हिचकते हैं।
बीच भँवर में छोड़ नैया, जाने किस ओर मुड़े।
मिल बुने जो साथ तुम्हारे, वो ख्वाब किलसते हैं।
रक्खे तुम्हें सलामत, दुआ कुबूले रब ‘सीमा’ की।
करुण रुदन से आर्तस्वरा के, पाहन भी पिघलते हैं।
– डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र)