सावन पर दोहे
सावन पर दोहे
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सावन में पड़ने लगी,रिमझिम सरस फुहार।
हरित चुनर ओढ़ी धरा,सुरभित है संसार।।
कोयल कूके बाग में , दादुर करते शोर।
सौंधी माटी की महक,फैल रही चहुँ ओर।।
कल कल कर बहने लगी,धरती में जल धार।
पावस का वरदान पा,आलोकित संसार।।
तरु लता सब झूमकर , देते है संदेश।
प्रेम रहे सब जीव में,छोड़ो कपट कलेश।।
पावस में धरती बनी,अब खुशियों का केन्द्र।
देखा जब मोहक छटा,झूमे आज डिजेन्द्र।।
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रचनाकार-डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभावना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822