सावन के झूलों पे, पूछे सखियाँ
शेर- मत तड़पा मुझको ऐसे, मेरे पिया तू सावन में।
आया है अम्बर भी मिलने, अपनी मेघा से सावन में।।
मुझको नहीं ऐसे रुला तू , इन सावन के झूलों पे।
आजा छोड़ परदेश अब, मुझसे मिलने तू सावन में।।
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सावन के झूलों पे, पूछे सखियाँ।
मुझसे तेरा नाम-पता,मेरे पिया।।
ओ पिया, ओ पिया,सावन में मिलने तू आजा पिया।(2)
सावन के झूलों पे———————–।।
यह बरखा रानी, पूछती है मुझसे।
तेरे पिया क्यों, दूर है तुझसे।।
राह तेरी देखें, मेरी अँखियाँ।
सावन में मिलने तू ,आजा पिया।।
ओ पिया, ओ पिया,सावन में मिलने तू आजा पिया।(2)
सावन के झूलों पे———————–।।
बागों में मोरनी भी, नाचे झूम- झूमकर।
मेघा को मिलने आया, अम्बर भी उड़कर।।
सात समुंदर तू , पार कर नंदियाँ।
सावन में मिलने तू , आजा पिया।।
ओ पिया, ओ पिया,सावन में मिलने तू आजा पिया।(2)
सावन के झूलों पे————————।।
सावन अधूरा जैसे, बरखा बिना।
श्रृंगार अधूरा मेरा, तुम्हारे बिना।।
लिखती हूँ रोज तुमको, मैं चिट्ठियां।
सावन में मिलने तू , आजा पिया।।
ओ पिया, ओ पिया,सावन में मिलने तू आजा पिया।(2)
सावन के झूलों पे————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)