सावन का महीना
सावन का महीना हो रही है काली रैन
सजन अब चले आओ जिया है बैचैन
जहाँ भी हो चले आओ छोड़ सब काम
जल रहा है तन बदन तरस रहें मेरे नैन
पिया मिलन की आस लौट भी आओ
राह ताके अँखियाँ बरस रहें हैं दो नैन
सावन बयार मेरे दिल को रहे चीरती
अनिल संग चले आओ बरस रहें नैन
दहकते अंग प्रत्यंग यौवन के ताप से
सांसे भी हैं गरम गरम विग्रह बैचैन
पक्षी सब नीड़ में हैं प्रेमरस में लीन है
जोगन की पीड़ा हरो रंग जाओ रैन
मन उदास है धन माया किस काम की
आओ अब आ ही जाओ बिलखते नैन
सावन का महीना हो रही है काली रैन
सजन अब चले आओ जिया है बैचैन
सुखविंद्र सिंह मनसीरत