सावन और हसीना
कुछ ऐसे लगता है ये सावन का महीना,
जैसे श्रृंगार किये हो कोई सुंदर हसीना।
हसीना की जुल्फों के जैसी काली घटाएं,
नीले नीले आसमान में हर रोज ही छाएं।
हसीना के यौवन सी प्रकृति देती दिखाई,
जैसे हरे रंग की चद्दर हो किसी ने बिछाई।
हसीना की वाणी सा मिठास त्यौहार देते,
आती तीज सावन में सभी खूब झूले लेते।
हसीना की मोहब्बत सा पवित्र और नेक है,
सावन में ही होता शिव का जलाभिषेक है।
जैसे हसीना के चेहरे से नजर नहीं हटती,
वैसे ही सावन की छाप दिल से नहीं मिटती।
सुलक्षणा की कलम ने लिखा हाल सारा,
देखने को नहीं मिलता सावन सा नजारा।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत