सावन और धरा की मोहब्बत का नज़ारा…
झूम के गीत गाती धरा,
लग रही थी मासूम कोई अप्सरा….!
खिली थी जहाँ में कितनी सारी कलियाँ,
बारिश की बौछार ने जब छुआ….!!
स्पंदन भरा स्पर्श था हर कण-कण में,
जब धराने उसे लिया गोदमें…!
हर तरफ सजी थी प्रकृति की रंगत,
वक्त भी थम के निरखता होगा सब…!!
देखने वालों की नजरों में भी नज़ाकत भरी,
दिलोमें भी हरियाली छा रही थी,
सौम्यता सभर कुदरत की कला…!!
सबकी धड़कनो को सुकून दे रही थी,
खीलकर सौंदर्य प्रसारने वाली अदभूत अदा…!
अंबर से सूर्य भी देखकर हैरान हुआ होगा,
धरा की ऐ खूबसूरत अदा….!!
मुझे बादलों ने छुपाया नहीं होता,
तो मैं भी निरखता…
सावन और धरा की मोहब्बत का नज़ारा…!!!