खरपतवार बोई नहीं जाती/नफरत भी ऐसी ही है !!
एक ऐसी टहनी जिसे !
कभी कोई काटता नहीं !!
और “आप”ने शुरुआत कर दी है !!
.
घमण्डी का सिर नीचा !
फिर भी लोग करते है पीछा !!
.
उच्चाई पा लेते है लोग !
इस विध !
फिर कौन पूछे !
तुम अतीत में !
आदमी थे !
कभी इतने लूच्चे !
.
अब खाने को मिलते !
दही बल्ले और कुल्छे !
कौन कहें !
अतीत गुजरा है भूखे !
.
कोई हिसाबी है !
कोई कवाबी है !
ज्यादातर घमंडी है !
ऐसी कोई जात नहीं भारत में !
अब कौन कहे !
“आप” कुरंगी हैं !!
.
बात रखिए !
मुलाकात वाली रखिए !
नफरत तो खरपतवार है साहेब !
बोई नहीं जाती !
खुद पे खुद !
उग आती है !!
.व्यंग्यात्मक हास्य कविता !!!