साल दर साल बीत जाने दो
साल दर साल बीत जाने दो
एक नया साल फिर से आने दो।
उम्र अब भी हमारी कमसिन है
दिल के जज़्बों को आज़माने दो।
रंग भर दो फिज़ाओं में दिल के
फिर तरन्नुम में गुनगुनाने दो।
दरकिनार कर दो दुनिया के मसले
एक नए ख्वाब को सजाने दो।
सुरों से सींच लो यह पल
दिल के तार झनझनाने दो।
सजाओ शाम की महफ़िल चराग़ों से
रक्स में खुद को उतर जाने दो।
विपिन