साल की अंतिम कविता
दर्द भरा था या खुशियों से,
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
रोके कटा या हँसकर बीता,
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
चाहे अमीर हो या गरीब हो
सबके मन को टिस गया।
साल 2020 में हमने जाना,
एक दूजे से दूरी रखना है।
मिलने से सबको बचना हैं।
नेगेटिव हो तो बहुत अच्छा है।
पोजेटिव हो तो बहुत ही बुरा।
दर्द भरा था या खुशियों से,
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
सबको मजा भी बहुत आया,
घर-घर में दीप जलाने में ।
ताली थाली बजाने में।
किसी ने अपनी जान गवा दी,
दूसरों की जान बचाने में ।
न जाने कितने दीप बुझे हैं,
जन जन को राह दिखाने में।
कितनों ने अपना घर देखा।
कितनों ने ही जान गवा दी ,
अपने अपने घर को आने में।
दर्द भरा था या खुशियों से।
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
यौवन कही पर हार गया,तो
कही पर बुढ़ापा जीत गया ।
दर्द भरा था या खुशियों से।
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
कभी लगा करता था मेला ।
अब कोई देता नही दिखाई हैं।
जीवन दाता का जीवन छीना।
मौत भी चीखी चिल्लाई हैं ।
किसी ने खोई सजनी अपनी
किसी ने खोया मीत यहां।
देवालय हो या कि विद्यालय
सब बन्द हो गया था तालों में।
दर्द भरा था या खुशियों से।
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
जन-जन के हृदय तल में ।
एक अमिट छाप छोड़ गया।
दर्द भरा था या खुशियो से
जैसा भी था वर्ष बीत गया।
●●●सर्वाधिकार सुरक्षित●●●
©®रवि शंकर साह
बैद्यनाथ धाम, देवघर, झारखंड