साली बन कर हुस्न ने
साली बन कर हुस्न ने , चूना दिया लगाय।
जीजाजी को इश्क ने, भूखा दिया सुलाय ।
भूखा दिया सुलाय , रात भर नींद न आयी ,
चढ़ा इश्क का भूत , मगर साली शरमाई।
कह प्रवीण कविराय , न देखें गोरी काली ,
बहे प्रेम रसधार, साथ जब जीजा -साली ।
“डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव”
सीतापुर