सार छंद आधारित गीत
#विधा – सार छंद आधारित गीत
#रचना -?
इच्छाओं के वस में होकर, कष्ट मनुज पाता है।
अभिलाषा के महा भँवर में, धसता ही जाता है।।
प्रेम स्वार्थ से हटकर हो तो, निश्चय ही हितकारी।
स्वार्थ भाव से ग्रसित हुआ तो, आती विपदा भारी।।
मृगतृष्णा उरतल में जिसके, प्रेम कहाँ पाता है।
अभिलाषा के महा भँवर में, धसता ही जाता है।।
स्वप्न देखना हर मानुष को, अक्सर ही भाता है।
सपने हों साकार सभी के , कम ही हो पाता है।।
चंचल मन से मिले विफलता, धैर्य कहाँ पाता है।
अभिलाषा के महा भँवर में, धसता ही जाता है।।
बिना कर्म जो मिले सफलता, उर में पाप जगाये।
सतत कुमारग पर ही उसको, अनायास ले जाए।।
बुद्धिमान भी आज कुपथ पर,बढता ही जाता है।
अभिलाषा के महा भँवर में, धसता ही जाता है।।
रहे जरूरत हमको जितनी, उतनी हो अभिलाषा।
सुंदर सहज सरल जीवन की, सुंदरतम परिभाषा।।
काम क्रोध मद लोभ सर्प बन, डसता ही जाता है।
अभिलाषा के महा भँवर में, धसता ही जाता है।।
?पूर्णतः स्वरचित , स्वप्रमाणित व अप्रकाशित
#रचनाकार का पूरा नाम? पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
★शहर का नाम? मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण
बिहार