सार्थक मंथन
कभी-कभी मैं सोचता हूं ,
हम कल्पनाओं में जीते हैं,
अपने धरातल के अस्तित्व को भुलाकर ,
ऊँँची उड़ान लेते हैं ,
यथार्थ को नकार कर ,
असंभावित मे लीन रहते हैं ,
स्वप्निल आशाओं , आकांक्षाओं, को
परिपूर्ण करने का निरर्थक प्रयास करते हैं ,
हम भूल जाते है कि , कल्पनाओं को साकार करने के लिए ठोस आधार आवश्यक है ,
ठोस आधार के लिए धरातल का अस्तित्व
आवश्यक है ,
ठोस अस्तित्व के लिए आत्मविश्वास से परिपूर्ण दृढ़ संकल्प आवश्यक है ,
संकल्पों को साकार करने के लिए आत्ममंथन आवश्यक है ,
सार्थक मंथन के लिए ज्ञान एवं प्रज्ञा शक्ति का विकास आवश्यक है ,
कल्पनाऐं क्षणिक सुख की अनुभूति तो देतीं है ,
परंतु समयांतर में निराशा ही हाथ लगती है ,