सारोकार:-“शिक्षक दिवस”—प्राचीन शिक्षा
सारोकार:———“शिक्षक दिवस”
————————-
“प्राचीन शिक्षा पद्धति-गुरुकुल”—भाग-(१)
——————————
भारत विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है।यहाँ की परम्परायें भी उतनी ही पुरानी हैं।हमारी शिक्षा व्यवस्था भी परंपरा और संस्कृति से गहरे जुड़ी है।गुरुकुल व्यवस्था शिक्षा का प्राचीनतम रूप है।प्राचीनकाल से ही हमारे पूर्वजों ने शिक्षा के महत्व को समझा और गुरूकुलों की स्थापना की।गुरुकुल व्यवस्था बड़ी सोच समझ कर स्थापित की गई व्यवस्था थी।गुरुकुल की स्थापना नगर से दूर एकांत स्थान पर की जाती थी।जहाँ सारे विद्यार्थी बिना किसी भेदभाव के शिक्षा ग्रहण करते थे।क्या राजकुमार और क्या आमजन सभी एक स्थान पर ही रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे।
——————-
हम आज यह समझते हैं कि प्राचीन काल में
गुरुकुल में सिर्फ वेद और पुराण पढ़ाये जाते होंगे।
गुरूकुल आज की शिक्षा व्यवस्था के विपरीत समग्र शिक्षा देते थे।वेद,उपनिषद् का अध्ययन का अर्थ ही गहन चिंतन है।शास्त्र और शस्त्र दोनों ही की शिक्षा एक साथ चलती थी।इसके अलावा विद्यार्थी की रुचि अनुसार उसकी पसंद के विषय में पारंगत किया जाता था।मैं गुरुकुल को ऋषिकुल कहना ज्यादा उचित समझता हूँ क्योंकि वे उनदिनों में एक जैसी सोच वाले ऋषियों के समूह में रहते थे।इसका स्पष्ट उदाहरण हम रामायण काल में देख सकते हैं जिसमें ऋषि वशिष्ठ श्रीराम को राजा दशरथ से शिक्षा देने के उद्देश्य से ले जाते हैं और राजा दशरथ थोड़ा असमंजस में रह कर कि वन के उस भाग में राक्षसों का आना जाना है।ऋषि कहते हैं कि वहाँ पर ऋषियों की तपस्या और यज्ञ में विघ्न डालते हैं राक्षस।यह द्रष्टांत ही स्पष्ट कर देता है कि ऋषि और गुरु समूह में विशेषज्ञता के अनुसार शिक्षा देते थे।
—————————
अपनी समृद्ध परंपरा पर हमें इसलिये भी गर्व होना चाहिये कि उस समय की गई खोजें आज भी ज्यों की त्यों प्रयोग में लायी जाती हैं।इसका सबसे बड़ा उदाहरण है आयुर्वेद और योग।जिसका लोहा आज पूरा विश्व मान रहा है।ॠषि कण्व द्वारा परमाणु की खोज को बाद में पश्चिमी देशों ने विकसित किया।
आर्यभट्ट और स्वामी कृष्ण भारती रामतीर्थ ने गणित को जो सूत्र दिये हैं वे आज सामयिक हैं।
इसी तरह महार्षि चरक और महार्षि सुश्रुत का आयुर्वेद और शल्य चिकित्सा संसार ऋणी है।महार्षि सुश्रुत द्वारा अपनाये गये विद्यार्थियों के लिये तरीके आज के शल्य चिकित्सकों के लिये भी ग्रहणीय हैं।आचार्य चाण्क्य का अर्थशास्त्र और राजनीति शास्त्र का एक अध्याय भी यदि कोई सीख ले तो सफल नेता बन जाये।आज भी कूटनीतिज्ञ को “चाणक्य नीति” ही कहा जाता है।भारतीय इतिहास ऐसे अनेकों विभूतियों से भरा हुआ है जिन्होंने मानवता के लिये सर्वस्व न्यौछावर कर दिया परंतु नाम की लालसा नहीं की।ऐसी भारतीय गौरवशाली परंपरा को नमन।
———————-
राजेश”ललित”शर्मा
———————–
कैसा लगा लेख?