सारे रंग बेटियों से ही तो हैं…
आँखे बंद करके
सोचा जब तुझे ,
तो बहुत ही करीब पाया …
छोटे – छोटे,नर्म -मुलायम ,
हाथों को अपने चेहरे के
करीब पाया …
फूलों की पंखुड़ी से
कोमल मुखड़े को
अपने बहुत करीब पाया …
सोचती हूँ कि अगर तुम
सचमुच ही मेरी बाँहों में
झूलती तो कितना
अद्भुत होता …
कभी ओझल न करती
अपनी नज़रों से ,
तुम्हारी भोली मुस्कान-
पर दुनिया ही वार देती मैं …
पैरो में नन्ही -नन्ही पायल
पहनाती
घुंघरू के रुनझुन को अंतर्मन में
कहीं गहरे -महसूस करती …
मेरी प्यारी बेटी मुझे लगता है
किस्मत वाले ही होते वे
जिनके घर बेटियां
होती है …
मुझे तुझ बिन दुनिया ही
बे-रंग लगती है
संसार के सारे ही रंग बेटियों
से ही होते है …
काश तू भी मेरी किस्मत में
होती तो मैं भी खुश- किस्मत
कहलाती…