सारे फरेब
बिसात है बिछी ,वह खेल रहा है l
सारे फरेब दिल , झेल रहा है ll
हम प्यादे वह ,बजीर बादशाह l
जीत किसकी ,कोई खेल रहा है ll
मर मिटे कहां ,यहां खेल खेल में l
जमीन आसमान का, न मेल रहा हैll
बादशाह कभी, यहां मरता नहीं l
जीवन ही खेल ,शतरंज रहा है ll
प्यादे से जाकर ,वजीर अब बना l
अपनों की है, फ़िक्र सोच रहा है ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l