सारे जहाँ को छोड़कर आना
सारे जहाँ को छोड़कर आना
इक़ इशारे पर दौड़कर आना
यही तो है शर्त मोहब्बत की
रुख़ हवाओं का मोड़कर आना
जो महका दे ता-उम्र के लिये
फूल कोइ ऐसा तोड़कर आना
ऊँचा हो मोहब्बत से भी वो
यकीं का रिश्ता जोड़कर आना
नज़र-ए-इनायत को अपने रब की
नारियल भी इक़ फोड़कर आना
वो भी उठाती आई है गर्दन
मुसीबतों की मरोड़कर आना
नफ़रत नहीं सिर्फ़ मोहब्बत की
ज़माने से ‘सरु’ होड़ कर आना