सारी फिज़ाएं छुप सी गई हैं
सागर की लहरें रूक सी गई हैं
काली घटाएं झुक सी गई हैं
जबसे आए हो तुम पास हमारे
सारी फिजाएं छुप सी गई हैं
सागर की लहरें……
जाग उठी हैं दिल में तरंगें
जाग उठी हैं मन में उमंगें
खामोशियां जैसे छंट सी गई हैं
सारी फिज़ाएं…….
नहीं रहा अब घोर अंधेरा
चहूं और यूं खिला सवेरा
मायूसियां जैसे हट सी गई हैं
सारी फिज़ाएं…….
ख्वाब ले रहे हैं अंगड़ाई
दूर हुई ग़म की परछाईं
तन्हाइयां जैसे मिट सी गई हैं
सारी फिज़ाएं…….
इंद्रधनुषी रंग हैं बिखरे
सप्त सुर जैसे हैं निखरे
“विनोद”महफ़िल सज सी गई है
सारी फिज़ाएं…….