सारस
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परिंदों का संसार बहुत ही सुंदर होता।
हर परिंदा किसी ना किसी खूबी से जाना जाता।।
सारस पक्षी का विशिष्ट संस्कृति महत्व से है नाता।
प्रथम ग्रंथ रामायण का श्रेय सारस पक्षी को जाता।।
सारस को भाता दलदली नदी का किनारा।
नमभूमि एवं तालाबों में होता इसका बसेरा।।
लम्बी गर्दन वाला पक्षी चोंच सुनहरा पाया।
सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी यह कहलाया।।
श्वेत स्लेटी रंग के परों से ढका।
चिकना हरीतिमा कलगी पर की त्वचा।
लम्बी -लम्बी टांगे इसकी, धीमे-धीमे चाल।
सिर के ऊपरी हिस्से पर थोड़ी खुरदरी त्वचा लाल।।
सारस गंभीर स्वभाव का होता है शर्मिला।
हरदम संग जोड़ा में रहता नहीं कभी अकेला।।
आहार खोजते हुए खामोश सदा रहता।
जाड़े में एक बोल उठे, दूसरा तुरंत आवाज लगाता।।
वर्षा ऋतु के आगमन में प्रणय नृत्य करता।
सारस की पुकार बुलंद दिशाओं में गूंजता।।
चोंच गर्दन आसमान की तरफ सीधा रखता।
कुद-कुद कर विभिन्न तरह से पंखों को फड़फड़ाता।।
सारस पक्षी का युगल नृत्य बड़ा आकर्षक होता।
नवविवाहिता को इसका दर्शन शुभ कहलाता।।
एक बार जोड़ा बनने पर जीवन भर साथ निभाता।
साथी से बिछड़कर अपने ये प्राण त्याग कर देता।।
नर-मादा एक दूसरे के प्रति पूर्णतः समर्पित होता।
मादा सेती बच्चे अपना, नर भी साथ निभाता।।
सारस प्रतीक है त्याग, प्रेम और समर्पण का।
है आदर्श पवित्र सौभाग्यशाली दाम्पत्य जीवन का।।
सारस पक्षी का वर्णन लोक कथा गीतों में मिलता।
सारस का विराट व्यक्तित्व बड़ा आकर्षक लगता।।
घट रही है विश्वस्तर पर सारस पक्षी की संख्या।
ये जाति विलुप्त हो रही है करो समुचित सुरक्षा।।
मुख्य कारण है बढ़ता प्रदूषण व पर्यावरण बदलता।
बिजली के अति उच्चधारा वाले तार से भी है खतरा।।
—लक्ष्मी सिंह ?☺