सामाजिक संस्कारों का पतन:
कुछ नहीं बचा पाएंगे हमारे हाथ से सबकुछ निकल चुका है। ईसाई मिशनरियों के स्कूलों, पाश्चात्य अंधानुकरण, बामपंथी गुटों एवं नए मोबाइल युग ने आपके बच्चों के संस्कारों को बदल दिया है। नई पीढ़ी में अमानुषी बीज स्कूलों से ही पड़ चुके हैं।
पूजा पाठ हमारी पीढ़ी तक ही शेष है,मंदिर जाना ,जल चढ़ाना, सूर्योदय से पहले जागना, सैर सपाटे, व्यायाम, योग, ध्यान, नियमपूर्वक चलना, तिलक-अक्षत, पवित्रता यह सब वो नहीं मानेंगे। धर्म, शांति, दया, समता, दान, सत्य, वीरता, मर्यादा, करुणा, ममता का उनमें सर्वथा अभाव होगा और ये इनका अर्थ भी नहीं जान पाएंगे। ज्ञान, सत्संग,पुराण, इन्हें ढकोसले लगेंगे और ये इन्हें कपोल कल्पित मानकर सिरे से खारिज कर देंगे।
ये लोग ऐसे संवेदनाशून्य होंगे जिन्हें किसी भी रिश्ते की कद्र नहीं होगी। ए. सी.कूलर पंखा की आदी ये नस्ल आधुनिक सुविधाओं के बिना एक घण्टे भी रहना बर्दाश्त नहीं करेगी। पैसे और मौज मस्ती की ओर भागने वाली अगली पीढ़ी यदि माँ-बाप बीमारी में मरते मरते पानी मांग रहे होंगे तब भी ये एक गिलास भरकर नहीं देंगे।
सिर्फ मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर ही इनकी दुनिया होगी। नए शुद्ध- सात्विक विचार इनके दिमाग में नहीं उपज पाएंगे माता पिता की समझाइश इन्हें जहर लगने लगेगी।
आज के नए लड़कों को उनकी माँ, दादी ,ताई चाची आदि घरेलू महिलाओं से खाना बनाना सीख लेना चाहिए अन्यथा घर के बने खाने के लिए तरसेंगे। क्योंकि ज्यादातर आधुनिक सोच की युवतियाँ आगे चलकर शायद खाना न बनाएं उन्हें नौकरी या बिजनेस से समय ही नहीं बचेगा। घर गृहस्थी ,रसोई संभालना अब सिर्फ पुरानी पीढ़ी पर निर्भर रह गया है नई पीढ़ी की महिलाएं रसोई के कार्य को बेगार की दृष्टि से देखने लगीं। बहुत कम ही इसकी ओर रुचि रखने वाली रह गई हैं अधिकांश नहीं हैं।
आजकल हवा ऐसी है कि महिलाएँ अपनी बच्चियों को रसोई का काम सिखाना ही नहीं चाहतीं, वे इस काम को स्तरहीन, घटिया और समय बर्बाद करने वाला तथा लज्जाप्रद मानने लगीं। वे लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ आधुनिक शिक्षा की गुलाम बनाकर पैसा कमाना सिखला रही हैं रसोई घर, चूल्हा चौका, कपड़ा ,बर्तन सबकुछ नौकरों पर निर्भर करना चाहती हैं । पैकेट बंद आटा, जंक फूड , होटल का खाना आपको हजम नहीं हो सकेगा ।घर का बना शुद्ध खाना आपकी पहुँच से दूर हो जाएगा। इसलिए जरूरत पड़ने पर किचेन का काम आपको आना चाहिये। कामकाजी युवक युवतियों में काम की अधिकता एवं उचित परिवेश नहीं मिलने से चिड़चिड़ापन, क्रोध, अहंकार निरंतर वृद्धि कर रहा है।
बूढ़े माँ बाप की जिम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहेगा अधिकांश लोग अकेले रहना पसंद करने लगे हैं।
विवाह प्रथा धीरे धीरे खत्म होने की कगार पर होगी। माता पिता के द्वारा वर वधु ढूंढने का चलन शायद आगे खत्म हो जाये, क्योंकि आज के युवक युवतियां अपनी पसंद से विजातीय शादियां करने लगे हैं यह प्रचलन रुकने वाला नहीं है अलग अलग वर्णधर्म के व्यक्तियों के विचार भिन्न भिन्न होने से कई बार इनमें झगड़े की नौबत आ जाती है। व्यक्तिगत लाइफ में किसी का भी हस्तक्षेप नहीं चाहते। लिव इन रिलेशन को वह सुगम और सर्वश्रेष्ठ मानने लगे।
नई पीढ़ी के लोग किसी भी हाल में बुजुर्गों को अपनी जिंदगी में दखल देना गलत ठहरा रहे हैं, इसलिए बुजुर्ग स्त्री बपुरुष अपनी शेष वआयु को बिताने के लिए कुछ न कुछ अर्थ का इंतजाम अवश्य करके चलें क्योंकि बुढ़ापे में जब हाथ पैर नहीं चलेंगे तो आपको जीवन यापन के लिए यह संचित पैसा ही काम आएगा।
आज की पीढ़ी ने एक कमरे को ही अपना संसार मान लिया है अगर मजबूरीवश कहीं रिश्तेदार बुलाते हैं या विवाह आदि में जाना पड़ गया तो ये दो चार घण्टे बिताना भी उचित नहीं समझते । बड़ी जल्दी भागकर अपने घर के उसी कमरे में आकर मोबाइल लैपटॉप से चिपक जाते हैं।
आगे बड़ा विकट समय आने की संभावना है क्योंकि सड़कों व गलियों में पैदल निकलना मुश्किल हो गया है। अभी ये स्थिति है कि जरा सी चूक होने पर आप हाथ पैरों से अपाहिज हो सकते हैं लोगों ने पैसा कमाने के लिए घर दुकानों के आगे वाहनों व संसाधनों के इतने अधिक फैलाव कर लिये हैं कि किसी भी हालत में वह कानून का पालन करना नहीं चाहते न उन्हें कोई रोकने वाला है न कोई भय है।
खाद्य पदार्थों, मसालों, सब्जियों व फलों के घटिया और मिलावटी सामान धीरे धीरे आयु क्षीण कर रहा है।लोगों का मेहनत से कमाया पैसा बीमारियों के उपचार में ब्यर्थ बह जाएगा।
भौतिक युग में यदि रोबोटों से काम लोगे तो उसमें कृतिमता ही रहेगी वह स्नेह, प्यार, संवेदना, वास्तिवकता कहाँ से लाओगे जो ईश्वरप्रदत्त मानव में समाई है। रोबोट का बटन दबाना भूल गए तो वह लाभ की बजाय हानि कारित कर देगा।
रील बनाकर पैसा कमा लोगे भौतिक इन्द्रिय सुख पा लोगे किंतु अन्तस् की शांति कहाँ से पाओगे ?आपसे जुड़े अन्य रक्त सम्बन्धियों को समय, प्रेम, समर्पण, साहचर्य कहाँ से दोगे?