#सामयिक_गीत :-
#सामयिक_गीत :-
■ इस बार दीवाली पहले वाली……!
(अपनी परंपराओं को समर्पित इन भावनाओं को चाहिए सभी सनातनियों और संस्कृति-निष्ठों का उत्साह से भरा सम्बल और समर्थन)
【प्रणय प्रभात】
★ फिर जगमग करते दीयों से सज्जित हो घर-घर में थाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।
★ इस महापर्व को सारे मिलकर पुनः पुरातन चेहरा दें,
मिट्टी से बने असंख्य दीप काली मावस को थर्रा दें।
फिर चाक चल पड़ें तेज़ी से लाएं कुटीर में खुशहाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ हर एक मुंडेर करे जगमग बस दीपावली दिखाई दे,
नूतन प्रकाश का पुंज शौर्य को शत-शत बार बधाई दे।
शाश्वत प्रकश से फिर हारें इस बार पांच रातें काली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ गोबर, गेरू, खड़िया से दमकें कच्चे आंगन दीवारें।
उन पर सुंदर मांडने बनें स्वागत की करते मनुहारें।
गांवों से शहरों तक छाए वो मादकता पहले वाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ चकरी, फुलझड़ी, लड़ी , हंटर, महताब रोशनी बिखराएं।
जगमग अनार उल्लास भरें रॉकेट हवा में इतराएं,
बच्चा-बच्चा आनंदित हो, ना हाथ रहे कोई खाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ गुझिया, मठरी, पपड़ी, सांकें मेहमानों का सत्कार करें,
जो परंपरागत व्यंजन हैं वो सब घर में तैयार करें।
घर-घर से सौंधी महक उठे हो जाए तबीयत मतवाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ श्रृंगारित हो कर मातृशक्ति हाथों में सुंदर थाल लिये,
दहलीज़, सड़क, चौबारे में उल्लास भाव से रखें दिये।
झिलमिल दीपक पावणे बनें ना देहरी एक रहे खाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
■ केले के पत्ते, पुष्पहार घर-द्वारों का श्रृंगार बनें,
सर्वत्र माध्यम स्वागत का गृहनिर्मित वन्दनवार बनें।
हो मुख्य द्वार पर रांगोली अनगिनत रंग सज्जा वाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ पहले दिन दीपदान कर के दूजे दिन मंगल न्हान करें,
सदियों की पावन परिपाटी जीवंत करें सम्मान करें।
मन में उमंग उमड़े ऐसे झूमे अंतर्मन की डाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ मावस के दिन घर महक उठें हो मध्य रात तक महाधूम,
मांता लक्ष्मी की अगवानी पूजन के संग हो झूम-झूम।
मां विष्णुप्रिया हो कृपावान हो दूर जगत की बदहाली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ गौवंश और गोवर्धन पूजन से सार्थक हो चौथा दिन,
हो अन्नकूट का श्रीगणेश कोई ना रहे प्रसाद के बिन।
समरसता वाली पंगत में क्या पाबंदी, क्यों रखवाली?
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
★ अंतिम दिन चित्रगुप्त पूजन, भाई-बहिनों का प्यार दिखे,
अरसे के बाद पुरानी रंगत में पावन त्यौहार दिखे।
हो महापर्व की छटा पुनः अद्भुत, अनुपम अरु नखराली।
इस बार दिवाली को आओ, हम सच में कर दें दीवाली।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)