#सामयिक_आलेख
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■ एक सनातन सत्य : पूर्वाग्रहों के विरुद्ध
【प्रणय प्रभात】
भगवा रंग मात्र एक रंग नहीं, सत्य सनातन है। क्योंकि इसका अस्तित्व, इसकी आभा अनंत काल अर्थात अनादि काल से है। त्याग व समर्पण के प्रतीक पाले और ऊर्जा व आकर्षण के प्रतीक लाल रंग का मिश्रण है भगवा। जो अपनी महत्ता स्वत: प्रमाणित करता है।
इस वर्ण की प्रभुसत्ता के सबसे बड़े सजीव और साक्षात प्रमाण हैं सकल सृष्टि की ऊर्जा व जागृति के आधार प्रभु सूर्य-नारायण। जो उदय और अस्त दोनों काल में भगवा रूप में होते हैं।
जिन्हें इस वर्ण को ले कर किसी विशेष कारण से पूर्वाग्रह है, उन्हें अपनी मोटी चमड़ी को धूप और आंखों को प्रकाश से भी बचाना चाहिए ताकि पाप न लगे और उनका जन्नती होना तय बना रहे।
यही नहीं। भगवा के पर्याय केसरिया रंग के विरोधियों को केसर के उपयोग से भी परहेज़ करना चाहिए। विशेष रूप से उनको, जिनकी सोच जन्मजात उल्टी और विभाजनकारी है। पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, भाषा और लिपि से लेकर रंग तक को बांटने वालों की कट्टरता को हम भी सलाम करें। बशर्ते वो भगवा और केसरिया रंग की हर चीज़ के पूर्ण बहिष्कार की खुली घोषणा कर दें।
हम उनके बेज़ा और बेहूदा विरोधों को सहर्ष स्वीकार कर लेंगे, अगर वे नारंगी, संतरा, पपीता और आम जैसे स्वादिष्ट व सेहतमंद फलों से अपना पिंड हमेशा के लिए छुड़ा लें। यदि संभव नहीं, तो आराम से बैठ कर सोचें कि इस रंग के ध्वज, पताका या परिधान के विरोध और उनसे चिढ़ का मतलब क्या…?
सृष्टि और सिरजनहार के प्रति आत्मा से कृतज्ञ हम सनातनी तो सदैव कहते रहेंगे कि-
“भगवा आभा छवि है प्यारी।
भगवा रंगत सबसे न्यारी।।
उगता सूरज भगवाधारी।
छुपता सूरज भगवाधारी।।”
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)
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