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19 Oct 2019 · 3 min read

सामयिक यथार्थ

यह क्या हो रहा है चारों तरफ इंसानी चेहरे लिए दानव नजर आते हैं ।
क्यों है नफरत इंसान की इंसान के लिए मौत के खिलौनों से खेलते ये नौजवान दिशाहीन दिग्भ्रमित रोबोट की तरह संचालित।
जिनका इस्तेमाल कुछ स्वार्थी तत्व अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत और कट्टरपंथ धार्मिक प्रवृत्ति के लिए के लिए कर रहे हैं ।
मानवता जैसे कि मृतःप्राय हो गई है ।
दुःखी और लाचार लोगों की मदद करने के स्थान पर उन्हें इस्तेमाल करके पैसा कमाने की चेष्टा तथाकथित समाज सेवी संस्थानों द्वारा की जा रही है।
न्याय समाज में दोहरा हो गया है
इसकी परिभाषा जिनके पास धन और ऱसूख़ है उनके लिए अलग है ।
जो तब़का ग़रीब है उसके लिए न्याय पाना एक टेढ़ी खीर बन गया है ।
उसे ज़िदगी भर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा कर अपनी जमा पूंजी गँवा कर भी न्याय हासिल नहीं होता ।
सामाजिक व्यवस्था इस प्रकार है कि बिना पैसे के कोई काम नहीं होता है।
हर जगह हर कदम पर पैसे की दऱकार होती है। शासकीय म़हकमें रिश्वत की दुकान बन चुके है। चिकित्सा क्षेत्र में भी मानवीयता का अभाव है ।
यहां पर भी बिना पैसे खर्च किए चिकित्सा उपलब्ध नहीं हैं ।
धर्म एवं समाज के नाम पर ठेकेदारों की कमी नहीं है जो लोगों को ब़रगला कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ।
राजनीतिक पार्टियां अपने वोट बैंक की राजनीति में मश़गूल है ।
जिनका लोगों के हितों की रक्षा एवं सामाजिक दायित्व के निर्वाह में कोई योगदान नहीं है। जिनका ध्येय केवल जातिवाद और वंशवाद को बढ़ावा देनाऔर व्यक्तिगत हितों की रक्षा करना है।
शिक्षा के क्षेत्र में भी लूटखसोट मची हुई है ।
शिक्षा के नाम पर पैसा कमाने की होड़ सी लगी हुई है ।
प्रतिभाशाली एवं मेधावी गरीब छात्र उच्च शिक्षा से वंचित है।
शिक्षा का पर्याय अधिक से अधिक पैसा बनाने की कुंजी हो गया है।
शिक्षण को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है।
इस बारे में कुछ लोगों की मानसिकता भी जिम्मेदार है ।
जिन्होंने शिक्षा को धनोपार्जन का माध्यम मान लिया है ।
ज्ञान प्राप्त करने में विद्यार्थी की भी रुचि नहीं है।
उसकी रुचि केवल अधिक से अधिक पैकेज वाली नौकरी प्राप्त करने में है ।
जिसके लिए वह अपने पालकों की जमा पूंजी भी दांव पर लगाकर अधिक से अधिक पैकेज वाली नौकरी दिलवाने वाली शिक्षा लेना चाहता है ।
इस विषय में पालको की अपेक्षा भी ज़िम्मेवार है जो दूसरों की देखा देखी में अपने बच्चों से कुछ अधिक ही उम्मीद लगा लेते हैं ।
जिससे वे अपने बच्चों की प्रतिभा का आकलन नहीं कर पाते हैं ।
जिसका दूरगामी प्रभाव बच्चों के भविष्य पर पड़ता है ।
व्यापार के क्षेत्र में पूंजीपतियों का बोलबाला है ।
लघु उद्योग और व्यवसाय महंगाई की मार झेल रहे है।
चारों ओर कालाबाजारी और मुनाफाखोरी फैली हुई है ।
आम आदमी के लिए रोजमर्रा की जरूरतें पूरा करना भी मुश्किल हो गया है।
खाने पीने की की चीजों के दाम पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।
जिसकी जैसी मर्जी है वैसा भाव वसूल कर कर रहा है।
उस पर बार बार चुनाव से सरकार पर खर्चा बढ़ रहा है।
नेताओं का अपनी कुर्सी बचाने और सरकार बचाने की कवायद में समय व्यतीत हो रहा है।
जनसाधारण की परेशानियां बढ़ती ही जा रही हैं ।
उस पर पड़ोसी देशों से संबंध खराब होने से युद्ध की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं।
लोगों में एक अस्थिरता का माहौल है ।
देश की आर्थिक स्थिति पर इसका कुप्रभाव पड़ रहा है ।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मंदी का प्रभाव भी देश की अर्थव्यवस्था पर हो रहा है।
यद्यपि सरकार आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु प्रयास रत हैं जिसके तुरंत प्रमाण नहीं मिल रहे हैं ।
आर्थिक स्तर पर उहापोह की स्थिति बनी हुई है ।
बैंकों का आर्थिक स्वास्थ्य सुदृढ़ नहीं है ।
हालांकि कुछ बैंकों को दूसरी बैंकों से मिलाकर स्थिति को सुधारने की कोशिश की जा रही है ।
फिर भी इस प्रयास से कितनी सफलता मिलेगी यह सोचनीय है ।
देश में धर्मांधता, जातिवाद ,वंशवाद एवं उग्रवाद का बोलबाला है।
सरकार एवं विपक्ष को इसे मिटाने के लिए एक दूसरे पर लांछन लगाने की बजाय मिलजुल कर कार्य करने की आवश्यकता है ।
जिसमें राष्ट्रहित सर्वोपरि हो ।
तभी सही मायने में राष्ट्र उन्नति संभव हो सकेगी। जनमानस को भी राष्ट्र चेतना से जागृत करना पड़ेगा। जिससे हर किसी व्यक्ति को अपने राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का बोध हो। और जिसका योगदान राष्ट्र समृद्धि में सहायक हो सके।

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Comments · 217 Views
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