#सामयिक दोहे
हृदय रहे मधुमास सम,जीवन भरे सुगंध।
जीव पुष्प-सा हँस रहे,मोहित करते बंध।।
सहायता पर कीजिए,बिना करे गुणगान।
मदद मिली का जिक्र हो,बनते तभी सुजान।।
जगत जगत् में कोटि हैं,समझो इनका भेद।
गगन सितारा रूप में,तुलना का है खेद।।
हुनर दिखाना शौक़ से,क़दर मिले दिन एक।
ना जाने किस काम से,चाहें लोग अनेक।।
भाग्य भरोसे बैठ के,रहना सदा उदास।
पीकर जल को ही बुझे,जगत् जीव की प्यास।।
गिरके उठता जीव जो,सफल बने दिन एक।
गिरके हारा हार से,कर्म करे क्या नेक।।
पल में ख़ुशियाँ ख़ोजिए,भूल भविष्य अतीत।
कालचक्र थमता नहीं,संग चलो ले प्रीत।।
#आर.एस.’प्रीतम’