सामंती व्यवहार
नहीं रहे राजे-महाराजे
न बचे अब कोई सामंत
लेकिन जन-गण-मन में
छोड़ गए वे सामंती प्रपंच
हर कोई है इसका
शिकारी और शिकार
अर्थात
सबकी चाहत-
‘दूसरे पर हो अपना अधिकार’
जो जितना कमजोर-
वह उतना अधिक शिकार.
जो जितना बड़ा
वह उतना बड़ा शिकारी.
इसी मानसिकता ने किया
दलित-पिछड़े और नारियों का बंटाधार
लड़कियों के विवाह के लिए शास्त्रीय शब्दपुंज
‘कन्यादान’
और आज का यह चालू जुमला
‘वाह क्या माल है!!!’
नारी के प्रति किस
मानसिकता का द्योतक है?
यही है सामंती दुराचार
-16 जनवरी 2013
दोपहर 2 बजे