*साबुन से धोकर यद्यपि तुम, मुखड़े को चमकाओगे (हिंदी गजल)*
साबुन से धोकर यद्यपि तुम, मुखड़े को चमकाओगे (हिंदी गजल)
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1)
साबुन से धोकर यद्यपि तुम, मुखड़े को चमकाओगे
मन के भीतर मैल भरा जो, कैसे उसे हटाओगे
2)
पद के पीछे भागा-दौड़ी, सिर्फ बेवकूफी समझो
नहीं रखा कुछ मूल्यवान निज, अपना समय गॅंवाओगे
3)
चार दिनों के जीवन में बस, आधा दिवस बचा शायद
समझदार हो आप अगर तो, कुछ करके दिखलाओगे
4)
जिसको देखो वही मारता, ‘टॅंगड़ी’ दीख रहा है अब
मैं भी तुम भी रस्ते में ही, दोनों गिर-गिर जाओगे
5)
ऐसे लोग कहॉं हैं अब जो, परहित जीवन जीते थे
किसी संग्रहालय में उनकी, बस तस्वीरें पाओगे
6)
कभी-कभी पोते-पोती भी, लगते हैं अजनबी बहुत
मेरी भाषा की कविताऍं, कैसे उन्हें सुनाओगे
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451